यूं तो हम सभी आधुनिक चिकित्सा और शास्त्रीय औषध के बीच अनेकों वाद-विवाद हमेशा से सुनते आ रहे हैं, जिस से ज्ञात होता है कि अपने अपने व्यक्तिगत अनुभवों के कारण समाज में कुछ लोग आधुनिक चिकित्सा और कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सा के पक्षधर होते हैं | परन्तु दोनों चिकित्सा पद्धतियों की अपनी सीमाएँ हैं | वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सा को चाहने वालों की संख्या में वृद्धि को देखते हुए आयुर्वेदिक औषधियों की उपलब्धता पर जरूर हमारा ध्यान जाता है अंग्रेजी दवाओं की तरह आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में मात्र एक प्रयोगशाला और कारखाने की ही आवश्यकता नहीं होती बल्कि यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों और विशिष्ट प्रजातियों की वनस्पतियों के विशिष्ट प्रयोज्यांगो द्वारा अनेक मानकों को पूरा करने के पश्चात निर्मित की जाती है|
दिन- प्रतिदिन औषधियों की बढ़ती मांग की एक वजह है कि 626 बिलियन का 2022 में भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों और औषधियों का कारोबार रहा है| साथ ही 2028 तक 1824 बिलियन के आयुर्वेदिक उत्पादों और औषधियों के कारोबार की संभावना बन रही है| भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा आज आयुर्वेदिक उत्पादनों के बलबूते पर दिखाई दे रहा है | अतः हजारों की संख्या में आयुर्वेद की औषधियों का निर्माण करने वाली कंपनियां, नए और बेहतर विकल्पों के साथ प्रस्तुत हो रही हैं |
मांग और आपूर्ति दोनों को हासिल करने की प्रतिस्पर्धा में स्वभाविक है कि फार्मा कंपनियां कहीं ना कहीं औषधि गुणवत्ता निर्माण प्रक्रिया आदि से कोई उपाय न होने के कारण समझौता कर रही हैं | औषधीय खेती को बढ़ावा देने के बाद भी प्राकृतिक संसाधन सीमित मात्रा व सीमित सवीर्यता अवधि से बंधे हुए हैं | इतने पर भी यदि नियंत्रण कर, मांग के अनुसार औषध निर्माण चलता रहे तो निर्माण की विभिन्न जटिल प्रक्रियाओं को मानक अनुसार पूर्ण कर पाना भी चुनौतीपूर्ण ही है |
इन चुनौतियों से आम उपभोक्ता सदा अनभिज्ञ रहता है| फिर भी औषध निर्माता कंपनियों का यह सार्थक प्रयास रहता है कि वैद्यों को उनका मानक अनुसार निर्माण प्रक्रिया, उत्तम गुणवत्ता से अवगत एवं परिचय करा दिया जाता है और इतना ही पर्याप्त भी है | प्रश्न जन सामान्य उपभोक्ताओं के लिए दुविधाजनक हो जाता है, जब वह यह निर्णय लेने में असमर्थ होता है कि किस कंपनी की दवा का सेवन किया जाए |
शास्त्रीय औषधियों से मेडिकल स्टोर भरा हुआ है, गुणवत्ता सभी की अच्छी बताई जा रही है, परंतु वाकई में अच्छी दवा कौन सी है , यह निश्चय कर पाना एक आम उपभोक्ता के लिए संभव नहीं हो पाता| इस पर आचार्य चरक ने निदान स्थान अध्याय 8 के 23 श्लोक में बताया है-
आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार औषधियों का शोधन करना अर्थात निर्दोष कर गुण वर्धन करना, अनावश्यक बाधक अंश, विजातीय द्रव्य अथवा मल को दूर करना या उसमें स्थित दोष को घटाकर गुण की वृद्धि करना आदि हेतु में से किसी एक या अनेक हेतुओं की सिद्धि के लिए औषधि द्रव्य पर जो संस्कार किया जाता है उसे शोधन कर्म कहते हैं | उदाहरण है कि वत्सनाभ में हृदय को अवसाद करने का धर्म उपस्थित है, पर उस धर्म को नियमित करने के लिए वत्सनाभ का शोधन गौमूत्र में किया जाता है अर्थात वत्सनाभ में गोमूत्र का प्रवेश कराया जाता है | इसी प्रकार सभी औषधीय रूप में प्रयोग किए जाने वाले विष और उपविष का शोधन, उनकी उग्रता या मारकता को दूर करने के लिए किया जाता है| परिपक्व हुए बिना रस रक्त आदि धातुओं में फैलना विष का स्वभाव है परन्तु शोधित विषों की उग्रता बहुत कम हो जाने से शुद्ध विष, मानव प्रकृति को हानि नहीं पहुंचा सकते|
प्रयोग: शमयेद्वयाधिं योऽनयमन्यमुदीरयेत् |
ना सौ विशुद्ध: शुद्ध स्तु शमयेद्यो न कोपयेत् || च0 नि0 8/23 ||
या ह्युदीर्णं शमयतिनाऽन्यं व्याधिं करोति च |
सा क्रिया न तु या व्याधिं हरन्तयन्यमुदीरयेत् || सु0 सू0 35/23||
अर्थात, वैद्य की युक्ति से विष भी अमृत हो जाता है तथा त्रुटिपूर्ण प्रयोग किया गया अमृत भी विश जैसा घातक हो जाता है|
यथा विषं यथा शस्त्रं यथा ऽग्निरशनिर्यथा |
तथौषधमविज्ञातं विज्ञातममृतं यथा ||
औषधंह्यनभिज्ञातं नामरुपगुणैस्त्रिभि: |
विज्ञातं चापि दुर्युक्त मनर्थायोपपद्यते ||
योगादपि विषं तीक्षणमुत्तमं भेषजं भवेत् |
भेषजं चापि दुर्युक्तं तीक्ष्ण संपद्यते विषम् || च0 सू0 1/124-126 ||
रोजमर्रा में यह देखा जाता है कि जो औषधियां कई वर्षों से प्रचलित हैं और जिनका विज्ञापन अत्यधिक प्रसारित होता है उनका उपयोग जन सामान्य द्वारा ज्यादा किया जाता है, परंतु आज के परिपेक्ष में गिनी चुनी कुछ फार्मेसी मानकों को ध्यान में रखकर सभी प्रकार से शास्त्रीय विधि एवं शास्त्रोक्त शोधन आदि द्वारा औषधियों का निर्माण कर रही हैं क्योंकि इन कंपनियों का ध्येय है गुणवत्ता को कायम रखते हुए प्रतिष्ठा को प्राप्त करना |
अतः कम औषध उत्पाद बना कर भी चुनिंदा कंपनियां आगे बढ़ रही हैं और यही धीरे धीरे लोकप्रिय भी हो रहीं हैं जिनमें से ” हैंप स्ट्रीट ” बड़ी तेजी से संज्ञान में आया है| ऐसा ज्ञात हुआ कि भांग के अत्यंत आवश्यक एवं प्रभावशाली चुनिंदा औषधीय योगों को बनाने वाली ये वह कम्पनी है जो मानकों को पूर्ण कर निर्माण कर रही है बल्कि विधिक अधिकार संबंधित नियमों के अनुसार बाजार में उतरी है |
मुख्य घटक के रूप में भांग युक्त औषध सेवन से कई बार रोगी को विभिन्न अवांछित लक्षण दिखाई देते हैं तथा लंबे समय तक उपयोग से अनेकों दोषपूर्ण लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं परंतु परीक्षण करने पर ऐसा पाया गया कि हेम्प स्ट्रीट द्वारा निर्मित औषधियों में भांग के एक भी साइड इफेक्ट देखने को नहीं मिले, चाहे लंबे समय तक इसका उपयोग क्यों न किया गया हो | अनेक वैद्य कहते सुने गये हैं कि औषध का प्रभाव है तो दुष्प्रभाव भी मिलेंगे लेकिन यही तो आयुर्वेद की विशेषता भी है कि आयुर्वेदिक औषधियाँ दुष्प्रभाव से रहित होती हैं | शास्त्रोक्त मात्रा, उचित शोधन विधि, और मानकीकरण के सभी पैमानों पर जब कोई औषध खरी उतरती है तभी उसका प्रभाव, दुष्परिणामों से रहित मिलता है|
अत: औषध निर्माण चाहे अपने घर पर किया गया हो या बडे पैमाने पर मशीनों की सहायता से बनाया जा रहा हो, हर स्थिति में बिना जल्दबाज़ी किये, शुद्ध व सही घटकों को लेकर, जैसी निर्माण विधि आयुर्वेद के शास्त्रों में वर्णित है, उसी के अनुरूप किया जाना, चिकित्सा को सफलतम गति प्रदान करता है जिससे आयुर्वेद की स्वीकार्यता और विश्वास दोनों में वृद्धि संभव है|
हेम्पस्ट्रीट द्वारा प्रकाशित