सार: इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम (आईबीएस) जठरांत्र संबंधी मार्ग में असुविधा पैदा करने वाली बीमारी का नाम है, जो एक बडी जनसंख्या को प्रभावित करती है। यह एक आंत्र विकार है जिसमे बिना किसी कारण के पेट में दर्द, सूजन, चिपचिपा मल और अनियमित मलत्याग की समस्या रहती है। इस बीमारी का सटीक कारण अभी भी पता नहीं लगा लेकिन बीमारी के पीछे तनाव प्रमुख कारकों में से एक है।
अध्ययन से पता चला है कि भारतीयों में आईबीएस की व्यापकता लगभग 15% थी जो इस बीमारी की गंभीरता और इसके लिए उपयुक्त चिकित्सीय दृष्टिकोण की आवश्यकता को दर्शाती है। आयुर्वेद ने इस रोग को “ग्रहणी” शब्द के तहत वर्णित किया और रोग के उपचार के लिए कई जड़ी-बूटियों और खनिजो से बने योग बताये। आयुर्वेद सभी रोगों को मनोदैहिक मानता है, इसलिए आईबीएस में आयुर्वेदिक उपचार के शानदार परिणाम देखे गये हैं।
इस केस स्टडी में 56 वर्ष की आयु के पुरुष रोगी को बार-बार मल त्याग करने, पेट में दर्द के साथ अनिद्रा की शिकायत थी। रोगी को 2 महीने तक आयुर्वेदिक हर्बो-मिनरल योग (त्रैलोक्य विजया वटी, विभिन्न भस्म और वटी, आदि) दिये गये। इसके बाद रोग के लक्षणों में कमी के साथ सुधार का आकलन किया गया।
परिचय
आयुर्वेद के अनुसार आईबीएस एक विकार है, जहां पक्वाशय में विशेष रूप से अपान वायु का विचलन होता है, जिससे पेट में दर्द और अनियमित मलत्याग होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस विकार के पीछे मुख्य कारण मन्दाग्नि या पाचन शक्ति का कमज़ोर होना है। विभिन्न आहार, विहार और साथ ही मानसिक निदान इस रोग के कारक हैं। अध्ययनों से यह भी पता चला है कि व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में गड़बड़ी से अग्नि भी अनियमित होती है। इसलिए रोगी को विभिन्न योगो के संयोजन द्वारा ही आराम मिलता है, जो मन या दिमाग पर कार्य के साथ-साथ ग्राही, दीपन, पाचन, बृँहण और वातानुलोमन के रूप में कार्य करते हैं।
केस रिपोर्ट
रोगी विवरण:
एक 56 वर्षीय पुरुष रोगी मेरे क्लिनिक में बार-बार मल त्याग करने, पेट में दर्द के साथ-साथ अनिद्रा की शिकायत के साथ आया। मल के साथ चिपचिपे स्राव की शिकायत भी थी। रोगी को मधुमेह / ब्रोन्कियल अस्थमा / टीबी / हाइपोथायरायडिज्म और उच्च रक्तचाप जैसा कोई रोग नहीं था।
नैदानिक खोज
सामान्य परीक्षा और व्यक्तिगत इतिहास: रोगी को भूख कम लग रही थी, भोजन के पाचन में कठिनाई, मलत्याग के दौरान भारीपन और अनियमित मलत्याग जैसी शिकायते थीं। रोगी को नींद ठीक से नहीं आ रही थी और वह कभी-कभी इस बीमारी या तनाव के कारण सो नहीं पाता था। रोगी की नाडी वात-पित्त प्रकार की थी। पेट की जांच करने पर हल्के दर्द की समस्या भी थी। स्टेथोस्कोप से जांच करने पर आंत्र से गैस की आवाज भी सुनाई दे रही थी।
उपचार योजना
रात में भोजन के बाद त्रैलोक्य विजया वटी 2 गोली, चित्रकादि वटी और कुटज घन वटी 2-2 गोली दिन में दो बार भोजन के बाद शुरू की। बिल्वादी चूर्ण, पंचामृत पर्पटी, गिलोय चूर्ण, शंख भस्म, रामबाण रस, और कुक्कुटांड त्वक भस्म जैसे जड़ी-बूटियों के मिश्रण को मिलाकर गुनगुने पानी के साथ दिन में दो बार 2-3 ग्राम की मात्रा में दिया गया। 30 दिनों के बाद, चित्रकादि वटी को मन शंख वटी से और पंचामृत पर्पटी को शतपुष्पादि चूर्ण से, गिलोय चूर्ण को हिरसादि योग से और कुक्कुटांड त्वक भस्म को कपर्दक भस्म से बदल दिया गया। रोगी को दूध या दुग्ध उत्पादों का सेवन न करने, तेज और मसालेदार भोजन से बचने की सलाह दी गई।
अवलोकन
उपचार के पहले महीने के दौरान, दर्द हल्का कम हो गया था और रोगी की नींद में सुधार के साथ-साथ मल के चिपचिपेपन में भी कमी आयी लेकिन फिर भी रोगी को बेहतर महसूस नहीं हुआ। दवा का एक महीना पूरा होने के बाद, रोग के लक्षणों में राहत और सुधार के लिए कुछ दवाओं को बदल दिया गया। 2 महीने के बाद, रोगी की नींद में सुधार हुआ, मल के चिपचिपेपन में कमी आयी, दर्द पूरी तरह से खत्म हो गया और शौच की आवृत्ति भी सामान्य हो गई।
विचार-विमर्श
अतः आईबीएस के इलाज के लिये हर्बो-मिनरल योगो के साथ चिकित्सा की जाती है जो ग्राही, दीपन, पाचन, बृँहण और वातानुलोमन के रूप में कार्य करते हैं।
यह मन या दिमाग पर भी कार्य करता है। मंदाग्नि इस रोग का प्रमुख कारण है जिसे चित्रकादि वटी की सहायता से ठीक किया जाता है। कुटज घन वटी ग्राही के रूप में कार्य करती है और इसमें कुटज त्वक होती है। यह अतिसार नाशक है जो मलत्याग की आवृत्ति को कम करने में मदद करता है और साथ ही मल को ढीले से ठोस करने में मदद करता है। बिल्वादि चूर्ण में आमनाशक, ग्राही और वातानुलोमन जैसे गुण होते हैं जो आईबीएस के लक्षणों को शांत करते हैं।
पंचामृत पर्पटी: दीपन, पाचन, ग्राही गुण होने से मलत्याग कम करने, अग्नि या पाचन शक्ति में सुधार करने में मदद मिलती है जो ग्रहणी रोग (आईबीएस) के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुक्कुटांड त्वक भस्म कैल्शियम का सबसे अच्छा स्रोत है जो सामान्य कमजोरी में सहायक है और दूध और दूध उत्पादों से परहेज के कारण शरीर में कैल्शियम की कमी को भी पूरा करती है।
शंख वटी में दीपन, पाचन, वातानुलोमन गुण होते हैं जो पेट दर्द को कम करने में मदद करते हैं और अग्नि या पाचन शक्ति में सुधार करने में मदद करते हैं। गिलोय चूर्ण में तिक्त रस होने से पेट पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और दर्द कम होता है।
इन सब के अलावा, रोग के मानसिक प्रभाव को कम करने के लिए उपचार की शुरुआत से ही त्रैलोक्य विजया वटी दी गयी थी। विजया युक्त योग में कैनाबिडिओल अल्कलॉइड होता है जो पौधे में प्राकृतिक रूप से मौजूद होता है और आइबीएस के लक्षणों के प्रबंधन में सहायक होता है।
शास्त्रो के अनुसार, विजया में वातशामक, दीपन और पाचन गुण होते हैं जो अग्नि को ठीक करने और पेट में ऐंठन के कारण होने वाले दर्द को कम करने में सहायक होते हैं। वंशलोचन इस योग का एक अन्य घटक है जो मन पर शांत प्रभाव डालता है जो मानसिक कारकों को कम करने में सहायक है जो कि आईबीएस के पीछे मुख्य कारण है। वंशलोचन यकृत के ठीक होने में भी मदद करता है जो पाचन शक्ति को बनाए रखने में मदद करता है।
निष्कर्ष
त्रैलोक्य विजया वटी आईबीएस के उपचार के लिए एक शक्तिशाली हर्बल योग है। यह शरीर और दिमाग दोनों पर कार्य करता है। शरीर पर अग्नि के सुधार और मन पर मानसिक कारक या तनाव को काफी हद तक समाप्त करके, त्रैलोक्य विजया वटी आईबीएस ठीक करने में बेहद असरदार योग है।
केस स्टडी: डॉ. राघव शर्मा, निरामय क्लिनिक, मुरादाबाद, यू.पी.
हेम्पस्ट्रीट द्वारा प्रकाशित