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Stree Roga In Ayurveda (आयुर्वेद और स्त्री रोग)

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परिचय (स्त्री रोग क्या है?)

स्वस्थ समाज के लिए महिलाओं का स्वास्थ्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। आयु का विज्ञान- आयुर्वेद प्राचीन काल से ही भारत में प्रचलित है। यहाँ कम लागत और आसानी से उपलब्ध होने वाली आयुर्वेदिक दवाओं को सुरक्षित माना जाता है। आयुर्वेद में(Stree Roga In Ayurveda), स्त्री संबंधी विकारों को योनिव्यापद के रूप में वर्णित किया गया है। विभिन्न स्त्री रोग जैसे अनार्तव, कष्टार्तव और अत्यधिक रक्तस्राव आदि मासिक धर्म संबंधी विकारों के अंतर्निहित कारकों को समझकर सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है।

इस संदर्भ में, आयुर्वेद के शास्त्रीय ग्रंथों में दिए गए सरल हर्बल योग अत्यधिक चिकित्सीय महत्व के हैं, जिनका मूल्य अकसर कम ही समझा जाता है। रजोदर्शन से ले कर रजोनिवृत्ति तक आयुर्वेद लगभग हर स्त्री रोग के सफल प्रबंधन के लिए समाधान प्रदान करता है।

गर्भावस्था से संबंधित बीमारियों के प्रबंधन के लिए आयुर्वेद में अच्छी तरह से योजनाबद्ध गर्भिणी परिचर्या वर्णित है। रजोनिवृत्ति सम्बंधित विकारों को भी हार्मोन के उपयोग के बिना लक्षणों को ठीक कर प्रबंधित किया जा सकता है। रजोनिवृत्ति के दौरान बीमारियों का प्रबंधन करने के लिए रसायन औषधियाँ दी जा सकती हैं।

आयुर्वेद में कई दवाओं का उल्लेख किया गया है जिन्हें वयस्थापक (एंटी-एजिंग) दवाओं के रूप में दिया जा सकता है। इस प्रकार, आयुर्वेद में वर्णित सरल उपचारों द्वारा कई स्त्री संबंधी बीमारियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सकता है।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य What Is Stri Roga?

विकासशील देशों में महिलाओं द्वारा वहन किये जाने वाले स्त्री संबंधी विकारों का विश्व भर में रुग्णता और मृत्यु दर में प्रमुख योगदान है। समग्र वैश्विक रोग भार का लगभग 8% स्त्री संबंधी विकारों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो अन्य प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे मलेरिया (1.04%), तपेदिक (2.9%), ह्रदय रोग (4.2%) और मातृ समस्याओं (3.5%) से अधिक है। अधिकांश विकासशील देशों में स्वास्थ्य कर्मियों की कमी का संकट है,  ऐसे में स्त्री रोगों का प्रबंधन करने के लिए कुछ विशेषज्ञ या अन्य स्वास्थ्य सेवा संवर्ग ही रह जाते हैं। कई देश सस्ती और व्यापक रूप से उपलब्ध दवाओं और संसाधनों का उपयोग करके स्त्री रोग की अधिकांश समस्याओं को रोक सकते हैं या इलाज कर सकते हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी के साथ ही  आधुनिक चिकित्सा व्यवस्था में कई बीमारियों पर बहुत ही सीमित अनुसंधान किया गया है। भारत में, पिछले कुछ दशकों में स्त्री रोग संबंधी विकारों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। प्रसूति और स्त्री रोग पेशेवरों ने आयुर्वेदिक चिकित्सा का अभ्यास किया है और आश्चर्यजनक परिणाम भी दिए हैं!

आयुर्वेद सिद्धांत (आयुर्वेद और स्त्री रोग)

आयुर्वेद के अनुसार, स्त्रीरोग संबंधी विकारों के इलाज के लिए हार्मोन्स को संतुलित करना, जीवन शैली को नियमित करना, तनाव को प्रबंधित करना और औषधीय जड़ी-बूटियों के साथ शरीर-ऊर्जा (दोष संघठन) के अनुसार आहार को अपनाना पडता है। उपचार को हमेशा रोगी के शरीर के ऊर्जा (दोष) संघठन के अनुसार निर्धारित किया जाता है।

Definition Of Stri Roga In Ayurveda

वातिक प्रकृति के रोगियों में मासिक धर्म कम अवधि का, अनियमित और बहुत कम रक्त प्रवाह के साथ होता है, इसमें ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से में दर्द, कब्ज, पेट फूलना, अवसाद, चिंता, कम जीवन शक्ति, अनिद्रा, और अत्यधिक संवेदनशीलता जैसी अन्य बीमारियाँ भी होती हैं।

पैत्तिक प्रकृति के रोगियों में मासिक धर्म में रक्त का प्रवाह अधिक होता है तथा यह मध्यम अवधि का होता है। वे मुँहासे, चकत्ते, लाल आँखें, चिड़चिड़ापन, दस्त, बुखार या जलन, और चेहरे पर अधिक तेज जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर सकते हैं।

कफज प्रकृति के रोगियों में लंबे समय तक, निरंतर और मध्यम रक्त प्रवाह वाला मासिक धर्म होता है तथा मतली, सूजन(ज्यादातर निचले पैरों में), भारीपन और थकान जैसी समस्याएं होती हैं।

अकसर, रोगियों में दो दोषों का संयोजन देखा जाता है।

यहां कुछ स्थिति / विकार दिए गए हैं, जिन्हें आयुर्वेद उपचार के साथ प्रभावी रूप से प्रबंधित किया जाता है- Stree Rog Aur Unka Ayurvedic Ilaj

• बांझपन – प्रजनन प्रणाली के घटकों को देखकर बांझपन का प्रबंधन किया जाता है। आयुर्वेद में प्रत्येक व्यक्ति के शारीरिक प्रकारों पर ध्यान दिया जाता है, निषेचन की प्रक्रिया में भाग लेने वाले शरीर प्रणालियों को उत्तम अवस्था में लाया जाता है और इसलिए यह निषेचन के लिए एक उत्कृष्ट विकल्प के रूप में कार्य करता है। अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण बात, प्रजनन क्षमता को बढाने में योग बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः व्यक्ति को पौष्टिक आहार के साथ-साथ स्वस्थ दिनचर्या का भी पालन करना चाहिए।

• मासिक धर्म से जुडी समस्याएं – महिलाओं के जीवन में, आर्तवचक्र यानी मासिक धर्म एक महत्वपूर्ण शारीरिक अभिव्यक्ति है, जो उसे मातृत्व की पहचान देता है। आयुर्वेद में दोषों के अनुसार मासिक धर्म संबंधी विकारों को अलग किया गया है जो एक विशिष्ट रोगी के लिए एक विशिष्ट उपचार का निर्धारण करने में मदद करते हैं और समस्याओं के स्थायी समाधान में मदद करते हैं।

• योनि सम्बंधी रोग

• गर्भाशय का संक्रमण

• पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम – पीसीओएस (पॉली सिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम) प्रजनन उम्र की महिलाओं में संभवतः सबसे तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है। जहां सामान्य आबादी में इस बीमारी की व्यापकता लगभग 5-10% है, वही भारतीय उपमहाद्वीप (52%) में अपेक्षाकृत इसका अधिक प्रसार है। यह विकार हाइपरएन्ड्रोगेनिज्म (नैदानिक ​​या जैव रासायनिक), लम्बे समय तक अनार्तव की समस्या और अंडाशय में बहुत सारी सिस्ट या ग्रंथि बन जाने पर होता है। यह अकसर इंसुलिन प्रतिरोध और मोटापे से जुड़ा होता है। आधुनिक दवाएं पीसीओएस में लाक्षणिक उपचार प्रदान करती हैं, वही आयुर्वेद ने आधुनिक चिकित्सा की किसी भी मदद के बिना और कम से कम दुष्प्रभावों के साथ पीसीओएस पर काबू पाने में लाखों की मदद की है।

• गर्भाशय फाइब्रॉएड / योनि स्राव

• स्तन की गांठ

• सफेद स्राव – ल्यूकोरिया को आमतौर पर “सफेद स्राव” के रूप में जाना जाता है। आयुर्वेद में ल्यूकोरिया को श्वेत प्रदर कहा गया है। इस शब्द का अर्थ है अत्यधिक सफेद स्राव। ऐसा माना जाता है कि यह विकार कफ दोष की वृद्धि या विकृति के कारण होता है। यह आमतौर पर उन रोगियों में होता है जो कमजोर, क्षीण और पाण्डु रोग से पीडित हैं। अधिकांश महिलाओं को एक निश्चित मात्रा में योनि स्राव का अनुभव होता है, जो शरीर की प्राकृतिक तरीके से सफाई, नमी, और योनि के संक्रमण के खिलाफ रक्षा करने की विधि है। आयुर्वेद ल्यूकोरिया के प्रबंधन के लिए कई उपचार विकल्प प्रदान करता है।

• एंडोमेट्रियोसिस

• रजोनिवृत्ति के बाद विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं 

 स्त्री संबंधी जो भी रोग हो, आयुर्वेद के पास सभी का जवाब है। चाहे एक दीर्घकालिक उपचार योजना हो या एक-दो दिन के लिए मात्र एक चिकित्सा सत्र हो, दिन-प्रतिदिन के जीवन में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य चिंताओं और समस्याओं का सामना कर रही महिलाओं का आयुर्वेदिक उपचार करना इससे जीतने का सबसे अच्छा तरीका है। स्त्री रोग के लिए आयुर्वेद का सबसे बड़ा लाभ दोष का संतुलन है जो शरीर में शुक्र के असंतुलन और महिला शरीर के प्रजनन तत्वों को ठीक करने में सहायता करता है।

इसके अलावा, आयुर्वेद द्वारा सभी स्त्रीरोग संबंधी विकारों के लिए इलाज के रूप में प्रदान लाभों में हार्मोनल परिवर्तनों को संतुलित करना भी है, जो महिलाओं को किशोरावस्था में कदम रखते ही या उसके चरम पर मासिक धर्म के साथ शुरू होता है। यहां से महिला के जीवन में होने वाले विभिन्न रोगों और विकारों का असली कारण सामने आता है। जब सबसे अच्छे स्त्री रोग उपचार के बारे में बात की जाती है, तो कई जड़ी-बूटियां हार्मोन को संतुलित करने के लिए काम करती हैं, त्वचा को पोषण दे कर गर्भाशय को ठीक रखने में सहायता करती है और अंततः महिला के शरीर के भीतर एक सही सामंजस्य स्थापित करने में जादूई साबित होती है।

प्रमुख जड़ी बूटियों में से कुछ निम्न हैं:

• हल्दी

•  लाल मिर्च

• काली मिर्च

• अदरक

• सौंफ

• इलायची

• लहसुन

• ब्रोकली

•  अंगूर

• अलसी के बीज

• दालचीनी

आयुर्वेद में स्त्री संबंधी विकारों के लिए एक आदर्श इलाज के रूप में कई चिकित्सीय उपाय भी बताये गये हैं।

अधिकतर अपनाये जाने वाले उपचारों में से कुछ निम्न हैं:

• लंघन: यह चिकित्सा शरीर में लघुता लाने का काम करती है (शरीर में हल्कापन पैदा करना)।

• रसायन: यह एक चिकित्सा के रूप में कार्य करता है जो स्वास्थ्य को ठीक करने और बढ़ाने का काम करता है।

• संशोधन: यह अशुद्धियों को पूरी तरह से हटा कर शुद्धिकरण का कार्य करता है।

• आहार: यह आयुर्वेदिक उपचार के बाद आहार में परिवर्तन कर अभ्यास में लाया जाता है।

• आचार: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो रोगियों के आहार और जीवन शैली की आदतों को बदलने में मदद करके किसी व्यक्ति के व्यवहार को बदलने में मदद करती है।

• वामन: वह चिकित्सा जो शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए उल्टी को प्रेरित करती है।

• विरेचन: यह चिकित्सा शरीर से अत्यधिक पित्त दोष को बाहर निकालने का कार्य करती है।

• उत्तरवस्ती: एक ऐसी चिकित्सा जो मूत्राशय के संक्रमण में आश्चर्यजनक कार्य करती है।

• नस्य: यह चिकित्सा शरीर के अंदर सामंजस्य बनाने के लिए नासिका के मार्ग से कार्य करती है।

• पंचकर्म: शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और शुद्धिकरण के लिए एक लोकप्रिय चिकित्सा।

स्त्री विकारों में ओटीसी चिकित्सा के जोखिम –

यदि आप भी आम लोगों की तरह हैं, तो आपकी दवाओं की कैबिनेट में संभवतः एक से अधिक ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाएं शामिल होंगी। हर साल, सिर दर्द से लेकर अजीर्ण तक हर चीज के इलाज के लिए भारतीय बिना-पर्चे की दवाओं पर करोड़ों खर्च करते हैं। ये दवाएं सुरक्षित रूप से तत्काल राहत पहुंचा सकती हैं; लेकिन अगर वे दुरुपयोग की जाये या अन्य दवाओं के साथ प्रयोग की जाये तो परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

लोग मान लेते हैं क्योंकि यह काउंटर पर उपलब्ध है तो यह सुरक्षित है। वास्तविकता यह है कि यदि आप बतायी गयी मात्रा, निर्देशों और चेतावनियों का पालन नहीं करते हैं, तो एस्पिरिन भी आपके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है या इसका नुकसान हो सकता है।

ओवर-द-काउंटर दवाओं का उद्देश्य अल्पकालिक बीमारियों और लक्षणों का इलाज करना है। लंबी अवधि तक इनका सेवन करने से किसी भी प्रकार के प्रतिकूल प्रभाव पैदा हो सकते हैं और यह बीमारी के बिगड़ने का कारण बन सकता है जिसका इलाज चिकित्सा पेशेवर द्वारा किया जाना चाहिए।

सभी स्त्री संबंधी विकारों का इलाज सर्वोच्च प्राथमिकता और संवेदनशीलता के साथ किया जाना चाहिये; इसलिए ओटीसी का उपयोग स्त्री रोगो में कड़ाई से प्रतिबंधित है।

आयुर्वेद क्यों चुने?

आयुर्वेदिक उपचार किसी भी दुष्प्रभाव से मुक्त होने के साथ-साथ प्राकृतिक और समग्र भी हैं। इन उपचारों के लिए साक्ष्य-आधारित अध्ययन उपलब्ध हैं। हाल ही के समय में आधुनिक मानकों और मापदंडों के अनुसार इनकी प्रभावशीलता को मान्य करने के लिए बहुत सारे शोध किए जा रहे हैं। जटिल हर्बल योगों के अलावा, चिकित्सा के लिए आयुर्वेदिक दृष्टिकोण समग्र है और ऊपर बताये गए हमारे पर्यावरण के सभी पहलुओं को ध्यान में रखता है और हमारे खराब स्वास्थ्य का कारण का पता लगा कर हमारे पर्यावरण, भोजन और जीवन शैली को संतुलित करके इसे ठीक करता है।

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